Chapter = 7 नियंत्रण एवं समन्वय
नियंत्रण एवं समन्वय का क्या अर्थ :-
- जीव में विभिन्न जैव प्रक्रम एक साथ होते रहते है इन सभी के बीच तालमेल बनाए रखने को समन्वय कहते हैं ।
- इस संबंध को स्थापित करने के लिए जो व्यवस्था होती है उसके लिए नियंत्रण की आवश्यकता होती है ।
उद्दीपन :-
- पर्यावरण में हो रहे ये परिवर्तन जिसके अनुरूप सजीव अनुक्रिया करते हैं , उद्दीपन कहलाता है । जैसे कि प्रकाश , ऊष्मा , ठंडा , ध्वनि , सुगंध , स्पर्श आदि ।
- पौधे एवं जन्तु अलग – अलग प्रकार से उद्दीपन के प्रति अनुक्रिया करते हैं ।
तंत्रिका तंत्र :-
- नियंत्रण एवं समन्वय तंत्रिका एवं पेशीय उत्तक द्वारा प्रदान किया जाता है ।
- तंत्रिका तंत्र तंत्रिका कोशिकाओं या न्यूरॉन के एक संगठित जाल का बना होता है और यह सूचनाओं को विद्युत आवेग के द्वारा शरीर के एक भाग से दूसरे भाग तक ले जाता है ।
ग्राही :-ग्राही तंत्रिका कोशिका के विशिष्टीकृत सिरे होते हैं , जो वातावरण से सूचनाओं का पता लगाते हैं । ये ग्राही हमारी ज्ञानेन्द्रियों में स्थित होते हैं । उदहारण
- कान में :- सुनना ( शरीर का संतुलन )
- आँख में :- प्रकाशग्राही ( देखना )
- त्वचा में :- तापग्राही ( गर्म एवं ठंडा , स्पर्श )
- नाक में :- घ्राणग्राही ( गंध का पता लगाना )
- जीभ में :- रस संवेदी ग्राही ( स्वाद का पता लगाना )
तंत्रिका कोशिका ( न्यूरॉन ) :- यह तंत्रिका तंत्र की संरचनात्मक एवं क्रियात्मक इकाई है ।
तंत्रिका कोशिका ( न्यूरॉन ) के भाग :-
- द्रुमिका :- कोशिका काय से निकलने वाली धागे जैसी संरचनाएँ , जो सूचना प्राप्त करती हैं ।
- कोशिका काय :- प्राप्त की गई सूचना विद्युत आवेग के रूप में चलती है ।
मानव तंत्रिका तंत्र :-
- मस्तिष्क
- मेरुरज्जू
मेरुरज्जु :- पूरे शरीर की तंत्रिकाएँ मेरुरज्जु में मस्तिष्क को जाने वाले रास्ते में एक बंडल में मिलती हैं । मेरुरज्जु तंत्रिकाओं की बनी होती है जो सोचने के लिए सूचनाएँ प्रदान करती हैं सोचने में अधिक जटिल क्रियाविधि तथा तंत्रिक संबंधन होते हैं । ये मस्तिष्क में संकेंद्रित होते हैं जो शरीर का मुख्य समन्वय केंद्र है । मस्तिष्क तथा मेरुरज्जु केंद्रीय तंत्रिका तंत्र बनाते हैं
मानव मस्तिष्क :- मस्तिष्क सभी क्रियाओं के समन्वय का केन्द्र होता है । इसके तीन मुख्य भाग है :-
- अग्रमस्तिष्क
- मध्यमस्तिष्क
- पश्चमस्तिष्क
1. अग्रमस्तिष्क :- यह मस्तिष्क का सबसे अधिक जटिल एवं विशिष्ट भाग है । यह प्रमस्तिष्क है ।
अग्रमस्तिष्क के कार्य :-
- मस्तिष्क का मुख्य सोचने वाला भाग होता है ।
- ऐच्छिक कार्यों को नियंत्रित करता है ।
- सूचनाओं को याद रखना ।
- शरीर के विभिन्न हिस्सों से सूचनाओं को एकत्रित करना एवं उनका समायोजन करना ।
- भूख से संबंधित केन्द्र ।
2. मध्यमस्तिष्क :- अनैच्छिक क्रियाओं को नियंत्रित करना । जैसे :- पुतली के आकार में परिवर्तन । सिर , गर्दन आदि की प्रतिवर्ती क्रिया ।
3. पश्चमस्तिष्क :-यह भी अनैच्छिक क्रियाओं को नियंत्रित करता है । सभी अनैच्छिक जैसे रक्तदाब , लार आना तथा वमन पश्चमस्तिष्क स्थित मेडुला द्वारा नियंत्रित होती हैं ।
इसके तीन भाग हैं :-
अनुमस्तिष्क :- यह ऐच्छिक क्रियाओं की परिशुद्धि तथा शरीर की संस्थिति तथा संतुलन को नियंत्रित करती है । उदाहरण :- पैन उठाना ।
मेडुला :- यह अनैच्छिक कार्यों का नियंत्रण करती है । जैसे :– रक्तचाप , वमन आदि ।
पॉन्स :- यह अनैच्छिक क्रियाओं जैसे श्वसन को नियंत्रण करता है ।
मस्तिष्क एवं मेरूरज्जु की सुरक्षा :-
- मस्तिष्क की सुरक्षा :- मस्तिष्क एक हड्डियों के बॉक्स में अवस्थित होता है । बॉक्स के अन्दर तरलपूरित गुब्बारे में मस्तिष्क होता है जो प्रघात अवशोषक का कार्य करता है ।
- मेरुरज्जु की सुरक्षा :- मेरुरज्जु की सुरक्षा कशेरुकदंड या रीढ़ की हड्डी करती है ।
विद्युत संकेत या तंत्रिका तंत्र की सीमाएँ :-
- विद्युत संवेग केवल उन कोशिकाओं तक पहुँच सकता है , जो तंत्रिका तंत्र से जुड़ी हैं ।
- एक विद्युत आवेग उत्पन्न करने के बाद कोशिका , नया आवेग उत्पन्न करने से पहले , अपनी कार्यविधि सुचारु करने के लिए समय लेती है । अत : कोशिका लगातार आवेग उत्पन्न नहीं कर सकती ।
- पौधों में कोई तंत्रिका तंत्र नहीं होता ।
पौधों में समन्वय :-
- शरीर की क्रियाओं के नियंत्रण तथा समन्वय के लिए जंतुओं में तंत्रिका तंत्र होता है । लेकिन पादपों में न तो तंत्रिका तंत्र होता है और न ही पेशियाँ । अतः वे उद्दीपन के प्रति अनुक्रिया कैसे करते हैं ?
- अतः पादप दो भिन्न प्रकार की गतियाँ दर्शाते हैं – एक वृद्धि पर आश्रित है और दूसरी वृद्धि से मुक्त है ।
पौधों में गति :-
- वृद्धि पर निर्भर न होना ।
- वृद्धि पर निर्भर गति ।
वृद्धि के कारण गति :-
- प्रकाशानुवर्तन : प्रकाश की तरफ गति ।
- गुरुत्वानुवर्तन : पृथ्वी की तरफ या दूर गति ।
- रासायनानुवर्तन : पराग नली की अंडाशय की तरफ गति ।
- जलानुवर्तन : पानी की तरफ जड़ों की गति ।
पादप हॉर्मोन :-पादप हॉर्मोन पौधे में पाया जाने वाला रासायनिक पदार्थ है । ये पदार्थ पौधे में नियंत्रण और समन्वय का काम करते हैं ।
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मुख्य पादप हॉर्मोन हैं :-
ऑक्सिन :- यह प्ररोह के अग्रभाग ( टिप ) में संश्लेषित होता है तथा कोशिकाओं की लंबाई में वृद्धि में सहायक होता है ।
जिब्बेरेलिन :- तने की वृद्धि में सहायक होता है ।
साइटोकाइनिन :- फलों और बीजों में कोशिका विभाजन तीव्र करता है । फल व बीज में अधिक मात्रा में पाया जाता है ।
एब्सिसिक अम्ल :- यह वृद्धि का संदमन करने वाले हॉर्मोन का एक उदाहरण है । पत्तियों का मुरझाना इसके प्रभाव में सम्मिलित है ।
जंतुओं में हॉर्मोन :-जंतुओं में रासायनिक समन्वय हॉर्मोन द्वारा होता है । ये हॉर्मोन अंत : ग्रंथियों द्वारा स्रावित होते हैं और रक्त के साथ मिलकर शरीर के उस अंग तक पहुंचते हैं जहां इन्हें कार्य करना होता है । हॉर्मोन :- ये वो रसायन है जो जंतुओं की क्रियाओं , विकास एवं वृद्धि का समन्वय करते हैं ।